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अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश

अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश

विदेशी बाजार में प्रवेश के निम्नलिखित तरीकों में से किसमें जोखिम और लाभ की संभावना सबसे अधिक होती है?

University Grants Commission (Minimum Standards and Procedures for Award अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश of Ph.D. Degree) Regulations, 2022 notified. As, per the new regulations, candidates with a 4 years Undergraduate degree with a minimum CGPA of 7.5 can enroll for PhD admissions. The UGC NET Final Result for merged cycles of December 2021 and June 2022 was released on 5th November 2022. Along with the results UGC has also released the UGC NET Cut-Off. With tis, the exam for the merged cycles of Dec 2021 and June 2022 have conclude. The notification for December 2022 is expected to be out soon. The UGC NET CBT exam consists of two papers - Paper I and Paper II. Paper I consists of 50 questions and Paper II consists of 100 questions. By qualifying this exam, candidates will be deemed eligible for JRF and Assistant Professor posts in Universities and Institutes across the country.

गिरते बाजार में घरेलू संस्थागत निवेशकों का रिकॉर्ड निवेश

नई दिल्ली। घरेलू शेयर बाजार (domestic stock market) में साल 2022 में आई गिरावट ने घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) को निवेश करने के लिए एक बड़ा मौका दे दिया है। इस साल घरेलू संस्थागत निवेशक (domestic institutional investors) भारतीय शेयर बाजार (Indian stock market) में 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश (Investing more than Rs 2 lakh crore) कर चुके हैं। घरेलू संस्थागत निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार में निवेश का ये आंकड़ा एक कैलेंडर वर्ष में किए गए निवेश का अभी अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। ये स्थिति भी तब है, जबकि 2022 के खत्म होने में अभी भी छह महीने से ज्यादा समय बाकी है।

शेयर बाजार के जानकारों का मानना है कि घरेलू शेयर बाजार में मंदी का ये दौर अगर कुछ और समय तक जारी रहा, तो साल 2022 के अंत तक घरेलू संस्थागत निवेशकों द्वारा अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश शेयर बाजार में किए गए निवेश का आंकड़ा 5 लाख करोड़ रुपये के स्तर को भी पार कर सकता है। धामी सिक्योरिटीज के वाइस प्रेसिडेंट प्रशांत धामी के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश इस साल अभी तक शेयर बाजार में आई गिरावट के दौरान जहां घरेलू संस्थागत निवेशक नेट बायर (शुद्ध लिवाल) रहे हैं, तो वहीं विदेशी संस्थागत निवेशक नेट सेलर (शुद्ध बिकवाल) की भूमिका निभा रहे हैं।

धामी के मुताबिक यूएस फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने और इस बढ़ोतरी को जारी रखने का संकेत देने के बाद से ही विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार समेत दुनियाभर के ज्यादातर बाजारों से अपना पैसा निकालने में लगे हुए हैं। अपना पैसा निकालने के लिए विदेशी निवेशक चौतरफा बिकवाली कर रहे हैं, जिससे शेयर बाजार में तेज गिरावट का रुख बना है। दूसरी ओर यही गिरावट घरेलू संस्थागत निवेशकों के लिए कम कीमत पर शेयर खरीदने का अवसर भी बन गया है।

पिछले करीब 8 महीने से भारतीय शेयर बाजार में गिरावट का दौर लगातार जारी है। 19 अक्टूबर 2021 को बीएसई का सेंसेक्स 62,245.43 अंक के अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुंचा था। उसी दिन एनएसई के निफ्टी ने भी 18,604.45 अंक के स्तर पर पहुंच कर ऑल टाइम हाई का रिकॉर्ड बनाया था। उसके बाद से शेयर बाजार में लगातार गिरावट का दौर जारी है। सेंसेक्स अपने ऑल टाइम हाई से करीब 10 हजार अंक नीचे लुढ़ककर कारोबार कर रहा है। वहीं निफ्टी में भी 2,800 अंक से अधिक की गिरावट आ चुकी।

अगर सिर्फ साल 2022 की ही बात की जाए, तो इस साल 18 जनवरी को सेंसेक्स 61,475.15 अंक के स्तर पर और निफ्टी 18,350 अंक के स्तर पर पहुंचा हुआ था। लेकिन उसके बाद की 5 महीने की अवधि में ही सेंसेक्स 8,675 अंक से ज्यादा और निफ्टी 2,570 अंक से अधिक लुढ़क चुका है।

मार्केट एनालिस्ट मयंक मोहन के मुताबिक भारतीय शेयर बाजार को गिराने में विदेशी निवेशकों की बिकवाली का अहम योगदान रहा है। लेकिन उनकी इसी बिकवाली ने घरेलू संस्थागत निवेशकों को घरेलू शेयर बाजार में तुलनात्मक तौर पर कम कीमत में बड़ा निवेश करने का मौका मुहैया करा दिया है। इस निवेश के जरिए घरेलू संस्थागत निवेशकों के पास कम कीमत में अच्छे स्टॉक्स का बड़ा भंडार इकट्ठा हो गया है।

मयंक मोहन का कहना है कि कुछ समय बाद जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थितियां सुधरेंगी और शेयर बाजार बाउंस बैक करेगा, तो अभी बिकवाली करने वाले विदेशी निवेशक उस समय चौतरफा लिवाली करने में जुट जाएंगे। ऐसा होने पर उस समय घरेलू संस्थागत निवेशक अभी खरीदे गए शेयरों को ऊंची कीमत पर बिक्री करके अच्छा मुनाफा कमाने की स्थिति में होंगे।

हालांकि कुछ जानकारों का ये भी कहना है कि घरेलू संस्थागत निवेशकों के लिए अभी जमकर खरीदारी करना उनके भविष्य के कारोबार के लिहाज से एक बड़ा जुआ भी साबित हो सकता है। क्योंकि अगर अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां उनकी उम्मीद के मुताबिक जल्द ही सकारात्मक नहीं हुईं और शेयर बाजार में तेजी का रुख नहीं बना, तो घरेलू संस्थागत निवेशकों के लिए इस साल अभी तक किए गए 2 लाख करोड़ रुपये के भारी भरकम निवेश को लंबे समय तक होल्ड कर पाना आसान नहीं होगा। ऐसी स्थिति में अपना कारोबार जारी रखने के लिए उन्हें जबरदस्त नुकसान का सामना करके अभी के निवेश को बाजार में और भी कम कीमत पर निकालना भी पड़ सकता है।

स्टॉक ब्रोकर नीरव बखारिया के मुताबिक रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध अगर लंबा खिंचा, तो पूरी दुनिया को एक बार फिर 2008 जैसी मंदी का सामना करना पड़ सकता है। खासकर अमेरिका समेत दुनिया के तमाम विकसित देशों में जिस तरह महंगाई बढ़ी है, उसने मंदी का संकेत दे दिया है। अमेरिका में महंगाई फिलहाल रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है और पिछले अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश 40 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थितियों में जल्द सुधार होने की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए।

हालांकि बखारिया का ये भी कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल्स इतने मजबूत हैं कि ग्लोबल मार्केट में बन रही दबाव की स्थिति का भारतीय बाजार पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ना चाहिए। भारतीय शेयर बाजार में निगेटिव ग्लोबल सेंटीमेंट्स कारण तात्कालिक असर जरूर पड़ सकता है, लेकिन लंबे समय तक ये गिरावट कायम रहने वाली नहीं है। इसलिए इस बात की संभावना कम ही है कि भारतीय शेयर बाजार लंबे समय तक गिरावट का शिकार बना रहेगा।

बखारिया का कहना है कि सेंसेक्स के लिए 52,0000 अंक के स्तर पर और निफ्टी के लिए 15,200 अंक के स्तर पर स्ट्रॉन्ग सपोर्ट बना हुआ है। सेंसेक्स के लिए 50,000 और निफ्टी के लिए 14,800 अंक के स्तर पर हेवी बैरियर भी है। अगर बिकवाली के दबाव में बाजार इस स्तर से नीचे चला जाता है, तो इसे घरेलू संस्थागत निवेशकों द्वारा पिछले पांच-छह महीने में किए गए ताबड़तोड़ निवेश के लिए खतरे की घंटी मानना चाहिए। अगर इस बैरियर के पहले ही शेयर बाजार की गिरावट रुक जाती है, तो फिर उसके बाउंस बैक करने में देर नहीं लगेगी। और जैसे ही शेयर बाजार बाउंस बैक करेगा, वैसे ही घरेलू संस्थागत निवेशकों की गिरावट वाले बाजार में निवेश करने की रणनीति पूरी तरह से सफल हो जाएगी। (एजेंसी, हि.स.)

Gold Price: लगातार गिर रहा सोना क्या और गिरेगा, खरीदें, बेचें या होल्ड करें?

Gold: इंटरनेशनल मार्केट में सोना ढाई साल के निचले स्तर पर क्यों?

अमेरिकी फेडरल रिजर्व (US Fed) के ब्याज दर बढ़ाते ही भारत समेत अंतररार्ष्ट्रीय बाजार में सोने (Gold) की चमक फीकी पड़ गई है. शेयर बाजार में निवेश करने को लेकर उत्साही रहने वाले भारतीय सोने को खरा समझते हैं और उसमें निवेश का मौका तलाशते हैं.

एमसीएक्स पर सोने की कीमतों में पिछले सात महीने की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज हुई है तो वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना ढाई साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है.

आइए जानते हैं क्या है सोने का भाव और क्या सोना अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश खरीदने का सही समय आ गया है?

क्या है सोने का भाव?

घरेलू बाजार एमसीएक्स (मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज) पर सोना की कीमतों में 0.25 फीसदी की गिरावट देखी गई है, जो पिछले सात महीने का निचला स्तर है. अब इसकी कीमत 49,321 रुपये प्रति 10 ग्राम पर आ गई है.

अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतों में एक फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. यहां इसकी कीमत 1656 डॉलर प्रति औंस पर है.

क्यों गिर रही है सोने की कीमत?

इसके पीछे सबसे बड़ी वजह अमेरिकी फेड द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी को माना जा रहा है. फेड ने महंगाई को नियंत्रण में लाने के लिए तीसरी बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है और 0.75 फीसदी रेट बढ़ा दिया है.

IIFL सिक्यॉरिटीज के कमॉडिटी और करेंसी में रिसर्च के वाइस प्रेसिडेंट अनुज गुप्ता ने क्विंट हिंदी से कहा कि, "जो ब्याज दरों में बढ़ोतरी हुई है उसके बाद नकदी में कमी आई है और लोगों का जो निवेश है वो डॉलर की तरफ शिफ्ट हो रहा है. डॉलर इस वक्त पिछले 20 साल के उच्चतम स्तर को छू चुका है और इसके उलट जो बाकी बड़ी करेंसी हैं वो सब गिरावट का दौर झेल रही है."

क्या सोना खरीदने का यही सही समय है?

क्विंट हिंदी से बातचीत में आईआईएफएल सिक्यॉरिटीज के अनुज गुप्ता कहते हैं कि, "इंटरनेशनल मार्केट में सोने का भाव ढाई साल के निचले स्तर पर आ चुका है. हालांकि घरेलू बाजार में कोई बड़ी गिरावट नहीं हुई है क्योंकि यहां रुपया काफी कमजोर है."

निवेशक होने के नाते देखे तो खरीदारी से पहले थोड़ा और वेट एंड वॉच करना चाहिए. इसमें अभी और गिरावट देखने को मिल सकती है. इंटरनेशनल मार्केट में इसका भाव 1600 डॉलर प्रति औंस हो सकता है और एमसीएक्स पर अभी ये 48,000 के आसपास आ सकता है. गोल्ड आपको लॉन्ग टर्म में बढ़िया रिटर्न देगा.

वहीं मनी कंट्रोल से बातचीत में ओरिगो ई मंडी के असिस्टेंट जनरल मैनेजर (कमोडिटी रिसर्च) तरुण तत्संगी कहते हैं कि, साल के अंत तक स्पॉट मार्केट में सोने का भाव 46,000 रुपये तक आ सकता है. 50,000 से नीचे आने पर सोना खरीद सकते हैं. सोने का रेट अगले एक साल में रिटर्न दे सकता है लेकिन अगले तीन से चार महीनों में इसमें बड़ी गिरावट देखने को मिल सकती है.

सोने में निवेश के तरीके

सर्राफा बाजार से सोने के आभूषण खरीदने के अलावा इसमें निवेश के कई और भी तरीके हैं.

एक है सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड- इसमें किया गया निवेश पूरी तरह सुरक्षित है क्‍योंकि इसमें रिजर्व बैंक की सुरक्षा गारंटी मिलती है. सॉवरेन गोल्‍ड बॉन्‍ड में 2.5% सालाना ब्याज के साथ सोने की कीमत बढ़ने का लाभ भी मिलता है. लेकिन इसमें किया गया निवेश 5 साल के लिए लॉक हो जाता है.

दूसरा, गोल्ड ईटीएफ- एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) के जरिए सोने में छोटा निवेश कर सकते हैं. यहां सोना यूनिट में खरीदा जाता है, एक यूनिट एक ग्राम होता है. इससे कम मात्रा में या SIP के जरिए भी सोना खरीदना आसान हो जाता है. गोल्ड ETF से खरीदे गए सोने की 99.5% शुद्धता की गारंटी होती है इसे संभालने की जरूरत भी नहीं होती क्योंकि यह डीमैट अकाउंट में होता है. जरूरत पड़ने पर इसे कभी भी स्टॉक एक्सचेंज पर बेचा जा सकता है.

Share Market: किसी ने कमाए करोड़ों- इसपर न जाएं, अपनी अक्ल लगाएं

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द्विपक्षीय निवेश संधियों के तहत विदेशी निवेशकों की बाजार पहुंच

विदेशी निवेशकों का बाजार पहुंच एक मेजबान देश में विदेशी पूंजी के प्रवेश के लिए अंतिम कदम है. अधिकांश देश आज द्विपक्षीय और कभी-कभी बहुपक्षीय स्तर पर अन्य देशों और संस्थाओं के साथ सहमत एक विशेष कानूनी ढांचे के माध्यम से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रवेश को नियंत्रित करते हैं. ऐसी संधियों में प्रवेश करके, राज्य अपनी संप्रभुता का एक हिस्सा देने पर सहमत होते हैं और कुछ नियमों और शर्तों को स्वीकार करते हैं जिस पर वे विदेशी पूंजी का इलाज करेंगे, विदेशी कानूनी संस्थाएं और विदेशी नागरिक.

Maket एक्सेस-इन-द्विपक्षीय-निवेश-संधियों

द्विपक्षीय निवेश संधियाँ ("बीआईटी"रों) अपने क्षेत्र पर विदेशी निवेश को बढ़ावा देने और संरक्षण के मामले में दो अलग-अलग संप्रभु देशों के आपसी संबंधों को विनियमित करें. वे आम तौर पर विभिन्न आर्थिक मानक वाले देशों के बीच संपन्न होते हैं, जहां उनमें से एक सबसे अधिक मामलों में एक विकासशील देश है. ऐसे संघ का औचित्य दोनों देशों का अपनी अर्थव्यवस्था और उद्योग को दूसरे में बढ़ावा देने का पारस्परिक हित है, पूरी तरह से अलग बाजार, जो अन्यथा अप्राप्य या अप्रतिस्पर्धी हो सकता है.

फिर भी, राज्यों को विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के बारे में कुछ स्तरों के संरक्षण और मानकों को लागू करने की इच्छा है जो हमेशा पूरी तरह से प्राप्य नहीं हो सकते हैं. वे विदेशी निवेश के संरक्षण के निम्न या उच्च स्तर पर सहमत होने के लिए स्वतंत्र हैं कि सामान्य क्या है, जब तक दूसरी पार्टी सहमत है. इस तरह से राज्य पैंतरेबाज़ी के कुछ मार्जिन रखते हैं और कथित महत्वपूर्ण राज्य हितों की रक्षा करते हैं.

बाजार पहुंच की धारणा को दो अंतर्विरोधी शब्दों के संयोजन के रूप में समझा जा सकता है - प्रवेश और विदेशी निवेश की स्थापना.[1] जबकि प्रवेश “जैसे मुद्दों को कवर करता हैप्रासंगिक आर्थिक क्षेत्रों की परिभाषा, भौगोलिक क्षेत्र, पंजीकरण या लाइसेंस की आवश्यकता और एक स्वीकार्य निवेश की कानूनी संरचना"[2], स्थापना की धारणा में "के मुद्दे शामिल हैंएक निवेश का विस्तार, करों का भुगतान या धन का हस्तांतरण"[3]. फिर भी, इन शर्तों का गहरा संबंध है और एक ही मुद्दे के दो पहलुओं को अलग-अलग कोणों से समाहित करता है - निवेशक और राज्य का दृष्टिकोण.

इस अवधारणा की झलक आमतौर पर बीआईटी के शुरुआती लेखों में दिखाई देती है, जहां देश विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के पारस्परिक हित पर सहमत होते हैं और मेजबान राज्य में विदेशी निवेशकों को उपचार के कुछ मानक प्रदान करते हैं।. सवाल के मानक या तो सबसे पसंदीदा देश के मानक हैं (एमएफएन) या राष्ट्रीय उपचार जहां मेजबान राज्य विदेशी निवेशकों के साथ अपने सभी नागरिकों के समान व्यवहार करने या विदेशी निवेशकों के लिए लागू सर्वोत्तम संभव उपचार लागू करने के लिए बाध्य करता है, जो आमतौर पर राष्ट्रीय के रूप में अच्छा नहीं है. एक देश के बाजार के खुलेपन की चर्चा होने पर ऐसा अंतर महत्वपूर्ण है. यह समझा जा सकता है कि राष्ट्रीय उपचार सबसे पसंदीदा राष्ट्र उपचार से एक स्तर का प्रतिनिधित्व करता है क्योंकि राज्य सभी निवेशकों के साथ समान रूप से व्यवहार करने के लिए सहमत है, भले ही उनके सिद्ध होने के बावजूद.

आधुनिक बीआईटी की एक और विशेषता लागू विवाद निपटान तंत्र का लगभग एकीकृत संदर्भ है. अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता कार्यवाही के लिए आज की बीआईटी के विकल्प का विशाल बहुमत और प्रक्रिया के लागू नियमों को सीधे परिभाषित करता है. इस तरह से, BIT में सन्निहित मानकों के उल्लंघन के मामले में, पक्ष तटस्थ मंच के समक्ष वाद विवाद निपटारे की ओर मुड़ सकते हैं.

जबकि सिद्धांत एक देश को विदेशी निवेशकों के लिए अपने दरवाजे पूरी तरह से खोलने का निर्णय लेने की संभावना को पहचानता है (तथाकथित "खुले द्वार" अर्थव्यवस्थाएं)[4], वास्तव में, यह काफी दुर्लभ है कि एक देश कुछ क्षेत्रों में विदेशी पूंजी के हस्तक्षेप की अनुमति देगा. हर राज्य वास्तव में प्रतिबंधित करता है, अगर पूरी तरह से बंद नहीं हुआ, अपने हितों के लिए महत्व के कुछ क्षेत्रों. ऐसे सेक्टर आमतौर पर हथियारों के उत्पादन से जुड़े होते हैं, ऊर्जा, दवाओं या रासायनिक उद्योग. अतिरिक्त आवश्यकताओं को लगाकर, जो संभावित निवेशकों को विशेष प्राधिकरणों और लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं को पूरा या निर्धारित करना चाहिए, राज्य ऐसे व्यक्तियों की क्षमता को कम करते हैं जो ऐसे व्यवसायों में शामिल हो सकते हैं. ऐसे क्षेत्रों और उद्योगों को परिभाषित करने का सबसे आम तरीका उन क्षेत्रों की नकारात्मक सूची की संरचना है, जिन्हें अतिरिक्त शर्तों की पूर्ति की आवश्यकता होती है या पूरी तरह से प्रवेश करने से प्रतिबंधित किया जाता है. ऐसी सूचियाँ आमतौर पर राष्ट्रीय कानून में प्रदान की जाती हैं.

तथापि, यहां तक ​​कि इस तरह का व्यवहार किसी देश के वास्तविक आर्थिक स्वास्थ्य पर निर्भर करता है और यह कुछ निश्चित पैटर्न का पालन करता है. यानी, विकासशील देश और संक्रमण वाले देश आमतौर पर विदेशी निवेश की सख्त जरूरत होती है जो आमतौर पर जीडीपी बढ़ाने का प्रमुख तरीका है. विपरीत करना, विकसित देशों, क्षेत्रीय और विश्व बाजार में उनकी स्थापित स्थिति के कारण, विदेशी निवेशकों के लिए बाजार पहुंच को प्रतिबंधित कर सकता है और महत्वपूर्ण ब्याज के रूप में माने जाने वाले कुछ क्षेत्रों में बाजार में प्रवेश करने की संभावना को पूरी तरह से प्रतिबंधित या संकीर्ण कर सकता है.

इसलिये, भले ही बीआईटी के भीतर विदेशी निवेशकों को उपचार के एक उन्नत मानक प्रदान करना आश्वस्त कर सकता है, राष्ट्रीय कानूनों में अंतिम शब्द होता है क्योंकि राष्ट्रीय कानून का संदर्भ दिया जा सकता है. विदेशी निवेशकों को राष्ट्रीय उपचार देने पर भी समस्या हो सकती है जब अतिरिक्त प्रशासनिक आवश्यकता की सूची होती है जो बाजार में वास्तविक पहुंच को प्रतिबंधित करती है.

इसलिये, विदेशी निवेशकों को सतर्क रहना चाहिए - राष्ट्रीय कानून से हमेशा परामर्श किया जाना चाहिए क्योंकि यह प्रभावी रूप से उपचार के अनुरूप मानकों को बताता है. बीआईटी का उल्लंघन मध्यस्थता प्रक्रिया का पालन करके किया जा सकता है, लेकिन ऐसा विकल्प हमेशा किसी विशेष मामले में निवेश की गई प्रत्येक और सभी परिसंपत्तियों की प्रतिपूर्ति प्रदान नहीं करता है.

[1] आर. Dolzer , सी. Schreuer , अंतर्राष्ट्रीय निवेश कानून के सिद्धांत, 2 रा ईडी, ऑक्सफोर्ड यूनिवरसिटि प्रेस, p.88 ; पी भी देखें. Julliard , “स्थापना की स्वतंत्रता, पूंजी आंदोलनों की स्वतंत्रता और निवेश की स्वतंत्रता ”, 15 ICSID की समीक्षा- FILJ 322, 2000, पी. 323.

[2] आर. Dolzer , सी. Schreuer , अंतर्राष्ट्रीय निवेश कानून के सिद्धांत, 2एन डी एड, ऑक्सफोर्ड यूनिवरसिटि प्रेस, p.88 .

[3] आर. Dolzer , सी. Schreuer , अंतर्राष्ट्रीय निवेश कानून के सिद्धांत, 2एन डी एड, ऑक्सफोर्ड यूनिवरसिटि प्रेस, p.88 .

[4] यूएनसीटीएडी, प्रवेश और स्थापना, अंतर्राष्ट्रीय निवेश समझौतों में मुद्दों पर श्रृंखला, संयुक्त राष्ट्र न्यूयॉर्क और जेनेवा, 2002, पी .3.

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