जमा मुद्राएं

कथित रूप से पीएम मुद्रा योजना के तहत जारी किए गए एक पत्र में ₹1999 जमा करने पर लोन उपलब्ध कराने का दावा किया जा रहा है#PIBFactCheck ➡️प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत ऐसा कोई पत्र जारी नहीं किया गया है। ➡️केंद्र सरकार के नाम पर हो रहे ऐसे धोखाधड़ी के प्रयासों से सावधान रहें। pic.twitter.com/3EAmafq3uo — PIB Fact जमा मुद्राएं Check (@PIBFactCheck) October 27, 2021
डेली न्यूज़
COVID-19 महामारी के प्रसार को रोकने की दिशा में प्रोटोकॉलों की बढ़ती संख्या के बीच, निजी क्षेत्र के प्रमुख बैंकों ने नोटों के माध्यम से इस महामारी के संचरण के डर से अनिवासी भारतीयों द्वारा जमा की जाने वाली विदेशी मुद्रा को स्वीकार करने से मना कर दिया है।
- बैंकों का मानना है कि अनिवासी भारतीय (Non-resident Indians- NRIs) खाताधारकों को सरकार ने बैंकिंग सेवाओं का उपयोग करने से रोकने की दिशा में कोई उपाय नहीं किये हैं, जबकि नोटों के माध्यम से COVID-19 के संचरण का जोखिम रहता है तथा इन मुद्राओं का पता लगाना बहुत मुश्किल होता है।
- NRIs अपने निवास स्थान तथा अपने मूल देश के बीच व्यापक ब्याज दर का अंतर होने तथा इस ब्याज दर का लाभ उठाने के लिये भारतीय बैंकों में अपना जमा मुद्राएं फंड जमा कराते हैं।
विदेशी विनिमय दर
- विदेशी मुद्रा की प्रति इकाई की घरेलू मुद्रा में कीमत ‘विदेशी विनिमय दर’ कही जाती है। विनिमय दर दो देशों की मुद्राओं के विनिमय के अनुपात को व्यक्त करती है।
- कुछ अर्थशास्त्री इसे घरेलू करेंसी का बाहरी मूल्य भी कहते हैं।
- NRIs भारतीय बैंकों में दो प्रकार के जमा खाते खोल सकते हैं-
- प्रत्यावर्तनीय जमा (Repatriable Deposits)
- अप्रत्यावर्तनीय जमा (Non Repatriable Deposits)
- NRIs के पास प्रत्यावर्तनीय जमा खाते के 2 विकल्प होते हैं-
विदेशी मुद्रा- अनिवासी- बैंक खाता(Foreign Currency Non-Resident- Banks):
- इसे संक्षिप्त में FCNR- (B) खाते के रूप में जाना जाता है, जिसमें मुद्रा जोखिम बैंकों द्वारा वहन किया जाता है।
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क्या सरकार मुद्रा योजना के तहत 1999 रुपये जमा करने पर दे रही 10 लाख का लोन? जानें डिटेल
- News18Hindi
- Last Updated : October 31, 2021, 11:29 IST
नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने छोटा कारोबार शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PM Mudra Yojana) शुरू की है. इसके तहत लोगों को अपना कारोबार शुरू करने के लिए छोटी रकम का लोन दिया जाता है. अभी कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक मैसेस वायरल हो रहा है जिसमें दावा किया जा रहा है कि सरकार सिर्फ 1999 रुपये जमा करने पर 10 लाख तक का लोन जमा मुद्राएं दे रही है. आइए जानते हैं मैसेज की सच्चाई…
ये है वायरल मैसेज की जमा मुद्राएं सच्चाई
वायरल हो रहे मैसेज में दावा किया जा रहा है, केंद्र सरकार मुद्रा योजना के तहत इंटरनेट बैंकिंग चार्ज 1999 रुपये जमा करने पर 2% की ब्याज दर से लोन दे रही है.
अमेरिका के आरोप का खंडन, RBI नहीं जमा कर रहा विदेशी मुद्रा
जनता से रिश्ता वेबडेस्क: भारत ने मुद्रा जोड़तोड़ के अमेरिकी आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा की जमाखोरी नहीं कर रहा। भारत को निगरानी सूची में डालना गलत कदम है। विदेशी विनिमय बाजार मेें आरबीआई की गतिविधियां पूरी तरह सामान्य हैं और सिर्फ जरूरी कदम ही उठाए जा रहे हैं।
वाणिज्य सचिव अनूप वधावन ने कहा, महामारी शुरू होने के बाद से यह दूसरी बार है जब अमेरिकी वित्त विभाग ने भारत को मुद्रा जोड़तोड़ की निगरानी सूची में डाला है। आरबीआई ने जीडीपी के 5 फीसदी तक डॉलर की खरीद की है, जो 2 फीसदी के दायरे तक सीमित है।
हालांकि, इसका पर्याप्त कारण है और जमाखोरी इसका मकसद बिलकुल नहीं है। भारत का कुल विदेशी मुद्रा भंडार अभी 500-600 अरब जमा मुद्राएं डॉलर के बीच है, जो पूरी तरह नियमों के अनुकूल है। हम चीन की तरह विदेशी मुद्रा की जमाखोरी नहीं कर रहे हैं। वधावन ने कहा, आरबीआई का कदम पूरी तरह बाजार परिचालन के अनुरूप है। केंद्रीय बैंक होने के नाते यह उसकी नैतिक जिम्मेदारी है कि अपनी मुद्रा को स्थिरता प्रदान करे।
मुद्रा संकट के डर से विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाते रहने के उलटे नतीजे भी मिल सकते हैं
चित्रणः रमनदीप कौर । दिप्रिंट
नये आंकड़े बताते हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) का विदेशी मुद्रा भंडार बहुत तेजी से बढ़ रहा है. अप्रैल 2020 के बाद से आरबीआइ के डॉलर के भंडार में 100 अरब डॉलर का इजाफा हुआ है और यह कुल 608 अरब डॉलर का हो गया है. इस तरह भारत दुनिया में सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार रखने वाला पांचवां देश बन गया है.
केंद्रीय बैंक इसे उचित ठहराने के लिए विदेशी मुद्रा का पर्याप्त भंडार रखने की बातें कर रहा है. कहा जा रहा है कि आरबीआइ सिर्फ इतना बड़ा भंडार रखता है जो आयात के 15 महीने के बिल का भुगतान करने को पर्याप्त हो जबकि दूसरे देश इससे ज्यादा जमा मुद्राएं का भंडार रखते हैं. स्विट्ज़रलैंड, जापान, रूस, चीन भारत की तुलना में जमा मुद्राएं ज्यादा बड़ा भंडार रखते हैं जो क्रमशः 39, 20, 16 महीने के आयात बिल के लिए पर्याप्त हो. लेकिन पिछले दो दशकों से आरबीआइ मुद्रा की गतिविधियों के मद्देनजर विदेशी मुद्रा भंडार रखने लगा है.
मुद्रा पर नज़र, लेकिन मुद्रास्फीति के लक्ष्य के विपरीत
विदेशी मुद्रा भंडार में हाल में जो वृद्धि हुई है वह रुपये की कीमत में वृद्धि को रोकने की कोशिश के तहत हुई है. जून 2020 में रुपया-डॉलर विनिमय दर 75.6 थी, आज यह मामूली सुधार के साथ 72.8 है. आरबीआइ के हस्तक्षेप के कारण बड़ी मूल्य वृद्धि को रोका जा सका. मुद्रा के साथ ऐसे खेल से दूसरे देश तो नाराज होते ही हैं, यह मुद्रास्फीति को बढ़ाने के कारण महंगा भी पड़ता है.
इसके अलावा, अगर जमा मुद्राएं जमा मुद्राएं मुद्रा पर अटकलों का गहरा हमला होता है तब गिरावट को रोकने के लिए भंडार का इस्तेमाल नहीं किया जाता. पहले, आरबीआइ रुपये की कीमत में गिरावट को रोकने के लिए मुद्रा नीति को सख्त करता था और पूंजीगत नियंत्रणों का प्रयोग करता था, न कि अपने अरबों की बिक्री करता था. केंद्रीय बैंक रुपये की मूल्यवृद्धि नहीं चाहता क्योंकि यह निर्यातों को गैर-प्रतिस्पर्द्धी बना देता है. इसलिए वह डॉलर खरीदने के लिए विदेशी जमा मुद्राएं मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप करता है.
क्या विदेशी मुद्रा भंडार घरेलू मुद्रा को कमजोर नहीं होने देता?
बड़े विदेशी मुद्रा भंडार को इसलिए भी उपयोगी माना जाता है कि यह केंद्रीय बैंक को मुद्रा को कमजोर होने से बचाने की पर्याप्त ताकत देता है. अगर डॉलर के मुक़ाबले मुद्रा का मूल्य घटने लगता है तब केंद्रीय बैंक डॉलर के भंडार में से बिक्री करके स्थानीय मुद्रा की खरीद कर सकता है और उसका मूल्य गिरने से रोक सकता है. लेकिन मुद्रा पर जब अटकलों के कारण दबाव हो तब ऐसा शायद ही हो पाता है.
अमेरिकी सरकार से मिले विशाल वित्तीय पैकेज के कारण उसकी अर्थव्यवस्था में काफी सरगर्मी है, और मुद्रास्फीति बढ़ रही है. ऐसे में अमेरिकी फेडरल रिजर्व पॉलिसी ब्याज दर में वृद्धि कर सकता है. अगर ऐसा होता है तब भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की हालत मई 2013 के ‘टेपर टैंट्रम’ कांड वाली हो जाएगी जब अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अपनी ‘क्वांटिटेटिव ईजिंग पॉलिसी’ को संकुचित करने का संकेत दे दिया था. इसके कारण भारत और दूसरी उभरती अर्थव्यवस्थाओं से पूंजी बाहर जाने लगी और उनकी मुद्राओं में गिरावट आ गई थी.