उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता

नाफ्टा में कितने देश सम्मिलित हैं?
उत्तरी अमेरिका के कबीले आपसी समझौता होने पर किस वस्तुओं का आदान प्रदान करती थी?
इसे सुनेंरोकेंइस समझौते के कारण इन तीनों देशों के बीच माल की ढुलाई पर लगने वाले कर को समाप्त कर दिया गया। इसके अन्तर्गत मुद्राधिकार, पैटेण्ट और उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता ट्रेडमार्क की सुरक्षा का भी प्रावधान है। इसे उत्तर अमेरिकी आर्थिक सहयोग समझौते के द्वारा अद्यतित किया गया, जिसने प्रदूषण को कम करने के लिए पर्यावरण विनियामकों की स्थापना में सहायता की।
उत्तरी अमेरिका में जलवायु में शिथिलता कब आई?
उत्तर अमेरिका का मुख्य भाग ४० उत्तरी अक्षांश से ८३० उत्तरी अक्षांश तथआ ५३० पश्चिमी देशान्तर से १६८० पश्चिमी देशान्तर के बीच स्थित है।…उत्तर अमेरिका
क्षेत्रफल | २,४७,०९,००० किमी२ (९५,४०,००० वर्ग मील) |
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जनसंख्या घनत्व | २२.९/किमी२ (५९.३/वर्ग मील) |
राष्ट्रीयता | उत्तरी अमेरिकी, अमेरिकी |
देश | २३ |
Nafta की स्थापना कब हुई थी?
इसे सुनेंरोकेंनाफ्टा के गठन के लिये प्रारम्भिक समझौते अगस्त 1992 में हुआ तथा दिसम्बर 1992 में तीन देशों के नेताओं ने औपचारिक समझौता पर हस्ताक्षर किए। 1993 में सदस्य देशों के राष्ट्रीय विधानमंडलों ने नाफ्टा के गठन को अभिपुष्ट किया। 1 जनवरी, 1994 को नाफ्टा प्रभाव में आया।
नाफ्टा का उद्देश्य क्या है?
इसे सुनेंरोकेंNAFTA के उद्देश्य संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और मेक्सिको के मध्य वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान में अधिकांश शुल्कों और अन्य व्यापार अवरोधों को समाप्त करना, तथा; अंततोगत्वा उत्तरी अमेरिका के तीन सबसे बड़े देशों के बीच एक मुक्त व्यापार गुट बनाना नाफ्टा के प्रमुख उद्देश्य हैं।
उत्तरी अमेरिका में मानव ने सबसे पहले कब प्रवेश किया?
इसे सुनेंरोकेंना-डीन (Na-Dené) लोगों ने उत्तरी अमेरिका में लगभग 8000 ईपू प्रवेश किया और 5000 बीसीई (BCE) तक वे उत्तर-पश्चिमी प्रशांत तट तक पहुँचे, और वहाँ से उन्होंने प्रशांत तटीय व भीतरी भागों में प्रवेश किया।
इसे सुनेंरोकेंNAFTA के सदस्य देश सदस्य: कनाडा, मैक्सिको और संयुक्त राज्य अमेरिका।
नाफ्टा क्या है in Hindi?
इसे सुनेंरोकेंक्या है NAFTA? उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता (North American Free Trade Agreement-NAFTA) एक व्यापक व्यापार समझौता है जो कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और मेक्सिको के बीच व्यापार तथा निवेश के नियम निर्धारित करता है।
भारत-ब्रिटेन के बीच व्यापार समझौता होने से सेवा निर्यात को बढ़ावा मिलेगा : एसईपीसी
नयी दिल्ली, 26 अगस्त (भाषा) भारत और ब्रिटेन के बीच प्रस्तावित मुक्त उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता व्यापार समझौते के अमल में आने से देश के सेवा निर्यात विशेषकर कानूनी, लेखा और लेखा परीक्षण क्षेत्र की सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। सेवा निर्यात संवर्द्धन परिषद (एसईपीसी) ने शुक्रवार को यह कहा। एसईपीसी के अध्यक्ष सुनील एच तलाती ने बताया कि ब्रिटेन के बाजारों में चिकित्सा प्रतिलिपी (मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन), कानूनी, लेखा और लेखा परीक्षण जैसे घरेलू सेवा क्षेत्रों में असीम संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हमारी सेवाओं के निर्यात के लिए ब्रिटेन में खासी संभावनाएं हैं। इस समझौते से सेवा निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।’’ भारत और ब्रिटेन
एसईपीसी के अध्यक्ष सुनील एच तलाती ने बताया कि ब्रिटेन के बाजारों में चिकित्सा प्रतिलिपी (मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन), कानूनी, लेखा और लेखा परीक्षण जैसे घरेलू सेवा क्षेत्रों में असीम संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हमारी सेवाओं के निर्यात के लिए ब्रिटेन में खासी संभावनाएं हैं। इस समझौते से सेवा निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।’’
भारत और ब्रिटेन के बीच व्यापार समझौते पर चर्चा इस महीने के अंत तक पूरी हो जाने की उम्मीद है। इस समझौते को विचारों के आदान-प्रदान के कुछ समय बाद लागू किया जाएगा।
तलाती ने कहा कि निर्यात में अच्छी वृद्धि को देखते हुए परिषद को ऐसी उम्मीद है कि 2022-23 के लिए तय 300 अरब डॉलर के निर्यात का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकेगा। 2021-22 में यह 254 अरब डॉलर था।
परिषद के आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से जून के उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता बीच सेवा निर्यात बढ़कर 71 अरब डॉलर हो गया जो पिछले वर्ष समान तिमाही में 56.22 अरब डॉलर था।
तलाती ने कहा कि असंगठित क्षेत्र के आंकड़ों को जुटाने के लिए एक व्यवस्था बनाने की जरूरत है। उन्होंने बताया, ‘‘गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कई चार्टर्ड अकाउंटेंट अमेरिका जैसे देशों में सेवा निर्यात करते हैं, इसके आंकड़े अभी जुटाए नहीं जाते हैं।’
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भारत का एफटीए एजेंडा क्या होना चाहिए?
विश्व में अनेक क्षेत्रीय व्यापार समझौते हुए हैं। भारत ने भी 2012 के बाद श्रीलंका, बांग्लादेश, आसियान, जापान और दक्षिण कोरिया से व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। भारत में मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के बारे में उद्योग व सरकार में एक विचार यह पनपना शुरू गया था कि इनसे भारत को फायदा नहीं हुआ बल्कि उल्टा इनसे उसके उद्योग को नुकसान हुआ। यह विचार त्रुटिपूर्ण था और हम एशिया के साथ महत्त्वपूर्ण समझौते क्षेत्रीय व्यापार आर्थिक भागीदारी (आरसेप) से 2019 में अलग हो गए। लेकिन एक लंबे अंतराल के बाद हम मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत करने के लिए राजी हो गए हैं। ये समझौते यूएई और ऑस्ट्रेलिया के साथ किए जा चुके हैं। इस क्रम में ब्रिटेन, कनाडा और यूरोपीय संघ (ईयू) से बातचीत विभिन्न चरणों में जारी है।
हमारे व्यापार पर एफटीए का कम ही प्रभाव रहा है। हमारे व्यापार में एफटीए की हिस्सेदारी साल 2000 में 16 फीसदी और अभी 18.5 फीसदी है। यह हमारे उद्योग के लिए विध्वंसक नहीं रहे हैं लेकिन हमें एफटीए से आशानुरूप फायदा नहीं दिखाई दिया है। हमारे व्यापार के ज्यादातर साझेदार गैरएफटीए देश अमेरिका, चीन और ईयू हैं। हमारे लिए आयात और निर्यात के मामले में अमेरिका का महत्त्व बरकरार है जबकि ईयू के मामले में गिरावट आ चुकी है।
इस मामले में सबसे बड़ा विजेता चीन उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता रहा है। साल 2000 में हमारे आयात में चीन की हिस्सेदारी 2.6 फीसदी और निर्यात में 1.5 फीसदी थी। लेकिन 2021 में भारत को होने वाले आयात में चीन की हिस्सेदारी 16.5 फीसदी और निर्यात में 7.3 फीसदी हो गई थी। इससे भारत के लिए अमेरिका के बाद चीन दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया।
कैसे हमें एफटीए से फायदा होगा? क्या एफटीए का एजेंडा होना चाहिए?
एफटीए पर हस्ताक्षर के मायने
हमें उन एफटीए की जरूरत है जो वर्तमान समय में उपयोगी देशों और क्षेत्रों से संबंधित हों या जिनसे हमारा भविष्य में सरोकार रहेगा। हमें वर्तमान समय में शीर्ष के निर्यात बाजार अमेरिका, ईयू और बांग्लादेश पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हमारे भविष्य के प्रमुख बाजार अफ्रीका और लैटिन अमेरिका हो सकते हैं।
हमने क्षेत्रीय व्यापार आर्थिक भागीदारी (आरसेप) से अलग होकर एशिया में अपनी पहुंच को सीमित कर दिया है और यह महाद्वीप आने वाले समय में विश्व की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। अब हमारे पास दूसरा मौका है, हाल में बने एशिया पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) में शामिल होने का। भारत अपनी भूल के कारण आईपीईएफ में व्यापार के आधार स्तंभ से बाहर रहा है। लिहाजा हमें इसमें तुरंत शामिल होना चाहिए और व्यवस्थित ढंग से व्यापार के एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहिए। आईपीईएफ में चीन को छोड़ अमेरिका, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और वियतनाम हैं जो हमारी दिलचस्पी के देश हैं।
लिहाजा आईपीईएफ में शामिल होने का दोहरा फायदा है। आईपीईएफ में शामिल होने से हम अपने देश के राष्ट्रीय हितों के अनुरूप वार्ता के तरीके और प्रारूप तय कर सकते हैं। हमें इस मौके को हाथ से नहीं गंवाना चाहिए।
विस्तार की महत्त्वाकांक्षा
विश्व का ज्यादातर कारोबार वैश्विक मूल्य श्रृंखला (जीवीसी) के तहत होता है। इसमें विभिन्न देशों में अनेक चरणों में मूल्य को जोड़ा जाता है। एफटीए का पुराना स्वरूप होने के कारण इसका प्रभाव सीमित हो गया है।
एफटीए में अत्यधिक खपत वाले उत्पादों को बाहर रखा गया या लंबी समायोजन अवधि के साथ विस्तारित शुल्क लगाया गया। अभी अन्य देशों की महत्त्वाकांक्षा कहीं अधिक है। इसीलिए आसियान, दक्षिण कोरिया और जापान ने हमारी तुलना में कहीं अधिक देशों से एफटीए कर रखे हैं।
इस क्रम में चीन ने भी समझौते कर रखे हैं। इनमें से कई समझौते हमारे समझौते के मुकाबले कहीं अधिक बड़े और ज्यादा प्रभाव डालने वाले हैं। इन्हें जीरो-फॉर-जीरो समझौते कहा जाता है। हालांकि जीरो सामान को एफटीए में शामिल नहीं किया गया है। जीरो टैरिफ अक्सर दोनों दिशाओं में लगता है। इससे करीबी व समृद्ध व्यापार श्रृंखला विकसित करने में मदद मिलती है जैसे इलेक्ट्रानिक्स।
पूरे एशिया में इलेक्ट्रानिक्स सामान के कलपुर्जे मिलते हैं और इन्हें असेंबल किया जाता है। हर देश में इन उत्पादों में मूल्य संवर्द्धन हो जाता है। एडम स्मिथ ने 250 साल पहले कहा था कि 'बाजार के विस्तारीकरण से विशेषीकरण का स्तर सीमित हो जाएगा।'
समझौते से उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता कई वस्तुओं को बाहर करने के कारण हम बाजार के विस्तार की अपनी क्षमता को कम कर देते हैं और हमारी आपूर्ति श्रृंखला में हिस्सेदारी लेने की क्षमता भी कम हो जाती है। सफलता की कुंजी उत्पादकता है। उत्पादकता विशिष्टता से आती है और यह हर जगह उत्पाद तैयार करने से नहीं आती है। हमारे व्यापार की नीति में आसान लगने वाली सोच का दबदबा अधिक है। हमें निर्यात पसंद है लेकिन आयात पसंद नहीं है। व्यापार का कोई भी अर्थशास्त्री यह बता सकता है कि आयात पर कर लगाना, दरअसल निर्यात पर कर लगाना है। ज्यादा महंगे व मांग वाले निर्यात के उत्पादों को बनाने के लिए उच्च व मांग वाले आयातित सामान की जरूरत होती है।
कुछ महत्त्वपूर्ण संभावनाएं
परिधान उद्योग के लिए कपड़ा बुनियादी जरूरत है। लेकिन परिधान में छोटे हिस्से जैसे बटन, जिप और अस्तर उत्पाद में जमीन-आसमान का अंतर डाल देते हैं। वाहन उद्योग उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता में आपूर्ति करने वाले स्तर की संख्या घटा दी गई है। इसका कारण यह है कि किसी भी स्तर पर अक्षमता से अगले स्तर पर उत्पाद कम प्रतिस्पर्धी हो जाता है।
हमारा वाहन उद्योग यह दावा करता है कि वह विश्व में छोटी कारों के निर्माण के लिए लागत के उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता हिसाब से सबसे उपयुक्त स्थान है। क्यों फिर यह ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ एफटीए में शामिल किए जाने के खिलाफ जोरदार बहस करता है? हमें अपनी क्षमताओं पर अधिक भरोसा होना चाहिए।
हमें हस्ताक्षर किए जाने वाले एफटीए में वाहन (वाणिज्यिक वाहनों से लेकर कारों तक, दोपहिया वाहनों से लेकर निर्माण उपकरण तक) और वाहनों के कलपुर्जों दोनों को शामिल करना चाहिए। ब्रिटेन ने 99 प्रतिशत टैरिफ लाइन को शामिल करने की पेशकश की है। भारत 100 प्रतिशत चाहता है और इसे प्राप्त करना चाहिए। और हमें भी अपना शत-प्रतिशत देना चाहिए। दूसरे शब्दों में इसे और व्यापक और प्रभावशील बनाए जाने की जरूरत है।
अंतर्निहित प्रतिस्पर्धा को दर्शाते व्यापार के ढर्रे
यह कोई संयोग नहीं है कि हमारा बीते दो दशकों में चीन, दक्षिण कोरिया और वियतनाम से कारोबार बढ़ा है। ये विश्व के सबसे ज्यादा प्रतिस्पर्धी देश हैं और लगभग सभी देशों के व्यापार संतुलन का झुकाव इन तीन देशों की ओर हो गया है। हम शायद गैर शुल्कीय बाधाओं और कारोबार की अधिक लागत की शिकायत कर सकते हैं लेकिन हम प्रतिस्पर्धा को बढ़ाकर व्यापार संतुलन को निश्चित रूप से सुधार सकते हैं।
हमें एफटीए का उपयोग अपनी फर्म की प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़ाने के लिए करना चाहिए। ऐसे में फर्म को अनिवार्य रूप से बदलाव करना चाहिए जिसमें आधारभूत सरंचना, नियमन, सहजता से कारोबार करना आदि हैं। इससे प्रतिस्पर्धी लागत में कमी आएगी।
समन्वित व्यापार और उद्योग नीति
हमारे उद्योग नीति में प्रमुख तौर पर उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना है। इस योजना के तहत 14 क्षेत्रों में उद्योग को सकल घरेलू उत्पाद की एक फीसदी रियायत की अवधि पांच साल है ताकि उनका उत्पादन बढ़े।
इन क्षेत्रों को हमारी व्यापार नीति से जोड़ा जाए। इसमें रियायत लेने वालों के लिए निर्यात अनिवार्य (अभी 14 क्षेत्रों में से दो या तीन क्षेत्रों में है) किया जाए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि पीएलआई में शामिल सभी उत्पादों को हस्ताक्षर किए जाने वाले एफटीए में स्पष्ट रूप से शामिल किया जाए। (यूएई से किए गए एफटीए में पीएलआई स्कीम के तहत एयर कंडीशनर को छोड़कर आने वाले सभी 'व्हाइट गुड्स' को शामिल किया गया था।)
चीन +1 नीति का फायदा उठाएं
एफटीए में अनिवार्य रूप से निर्यात और आयात पर जोर होना चाहिए। हमारा इन उत्पादों से अधिक सरोकार है - वाहन और उनके कलपुर्जे, व्हाइट गुड्स, वस्त्र और परिधान, रसायन व औषधि और इंजीनियरिंग। लिहाजा हमें इन उत्पादों को अवश्य शामिल करना चाहिए। ये उत्पाद हमारे आने वाले कल के लिए जरूरी हैं।
हमें व्यापार वार्ताओं में ई-कॉमर्स, इलेक्ट्रिक वाहन और डेटा निजता को शामिल करना चाहिए - हमें इस मामले में जल्दी से राय बनानी चाहिए। हमें यह भी देखना चाहिए कि इन क्षेत्रों में हम कहां खड़े हैं।
विश्व चीन +1 की आपूर्ति की ओर बेसब्री से देख रहा है। ऐसी स्थिति का फायदा लेने के लिए भारत से अच्छा कोई देश नहीं है। लेकिन इस स्थिति का फायदा लेने के लिए यह जरूरी है कि हमारा उद्योग अपनी क्षमताओं पर विश्वास करे ताकि वह भारत और विश्व में सर्वश्रेष्ठ के लिए प्रतिस्पर्धा कर सके। भारतीय उद्योग का भविष्य व्यापार निर्धारित कर सकता है।
इजरायल ने यूएई के साथ किया मुक्त व्यापार समझौता
इजरायल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट ने ट्वीट कर कहा कि इजराइल और यूएई ने एक ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए.
इजरायल और संयुक्त अरब अमीरात ने मंगलवार को मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह पहला मौका है, जब इजरायल ने किसी अरब देश के साथ मुक्त व्यापार समझौता किया है।
इससे पहले यूएई वर्ष 2020 में अमेरिकी के समर्थन से इजराइल के साथ संबंधों को सामान्य करने के लिए सहमत हुआ था। तब से दोनों देशों ने विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाया है। इजरायल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट ने ट्वीट कर कहा कि इजराइल और यूएई ने एक ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। किसी अरब देश साथ किया गया यह इस तरह का पहला समझौता है। देश के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी एफटीए को इतनी जल्दी निष्कर्ष पर पहुंचाया गया है।
वहीं, इजरायल में यूएई के राजदूत मोहम्मद अल खाजा ने इस समझौते को अभूतपूर्व उपलब्धि बताते हुए कहा कि इससे दोनों देशों की कंपनियों को बाजारों तक तेजी से पहुंचने और कम लागत में उत्पादों को बेचने में मदद मिलेगी। दोनों देश इसके जरिए व्यापार को बढ़ाने, नौकरियां पैदा करने और सहयोग को और मजबूत करने के लिए काम करेंगे।
कनाडा, मेक्सिको के साथ नाफ्टा पर समझौता जल्द : अमेरिका
कनाडा, मेक्सिको के साथ नाफ्टा पर समझौता जल्द : अमेरिका
वाशिंगटन, 27 जुलाई (आईएएनएस)| अमेरिकी वित्त मंत्री स्टीव नुचिन ने उत्तर अमेरिका मुक्त व्यापार समझौता (नाफ्टा) में संशोधन के लिए कनाडा और मेक्सिको के साथ जल्द समझौता होने की उम्मीद जताई। नुचिन ने कहा, हमें बहुत जल्द समझौता होने की उम्मीद है। यह मेरी पहली प्राथमिकता है। मुझे लगता है कि हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटाइजर ने सांसदों को भरोसा दिलाया कि मेक्सिको और कनाडा के साथ वार्ता तेजी से आगे बढ़ रही है।
उन्होंने कहा, हम इस समझौते को मूर्त रूप देने के अंतिम स्तर पर है। इस समझौते से अमेरिका के कामगारों, किसानों और व्यापारियों को लाभ होगा।
मेक्सिको के अर्थव्यवस्था मंत्री इडेफोन्सो गुआजाडरे नाफ्टा पर लाइटाइजर के साथ बातचीत के लिए गुरुवार को वाशिंगटन में थे।
(ये खबर सिंडिकेट फीड से ऑटो-पब्लिश की गई है. हेडलाइन को छोड़कर क्विंट हिंदी ने इस खबर में कोई बदलाव नहीं किया है.)
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